यूसीसी का बढ़ा विरोध, सर्व आदिवासी समाज ने सौपा ज्ञापन सरकार बिल पास कर करना चाह रही आदिवासियो के अधिकारो का हनन
यूसीसी का बढ़ा विरोध, सर्व आदिवासी समाज ने सौपा ज्ञापन
सरकार बिल पास कर करना चाह रही आदिवासियो के अधिकारो का हनन
मतीन रजा/दीपक मेश्राम
लालबर्रा पृथ्वी टाईम्स -म.प्र.आदिवासी विकास परिषद शाखा लालबर्रा के बैनर तले ब्लाक अध्यक्ष ज्ञानसिंह गोड़गे एवं सचिव अनिल उइके के नेतृत्व में गुरूवार को शाम भारत में कॉमन सिविल कोड अर्थात समान नागरिक संहिता कानुन यू.सी.सी. के विरोध में महामहिम राष्ट्रपति, राज्यपाल, अनुसूचित जनजाति राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं लॉ कमीशन ऑफ भारत के नाम तहसीलदार उमराजसिंह वाल्के को ज्ञापन सौपा गया।
कानुन बनने से आदिवासियों की पहचान और अस्तित्व पर मंडराएगा खतरा-झनकार
नोट-झनकारसिंह उइके की फोटो साथ में प्रेषित है,लगा देवे।
चर्चा में म.प्र.आदिवासी विकास परिषद कार्यवाहक ब्लाक अध्यक्ष झनकारसिंह उइके ने बताया कि आदिवासियों को अनुसूचित जनजातियों के रीति रिवाज, परंपरा, अलग विवाह, उत्तराधिकारी कानून है। इसी के चलते संविधान बनाने वालों ने संविधान के अनुच्छेद में संविधानिक अधिकार दिए हैं, संविधान पूर्व करार संधि का ध्यान रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 44 में लिखित राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अनुसार समान नागरिक संहिता लगाएं। श्री उइके ने बताया कि आदिवासियों को संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची तथा पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम के तहत कई अधिकार प्राप्त हैं। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता आदिवासी समाज की सदियों से चली आ रहे विशिष्ट रीति-रिवाज और परंपराओं को प्रभावित करेगा, जिसके परिणामस्वरूप आदिवासियों की पहचान और अस्तित्व पर खतरा मंडराएगा। देशभर में समान नागरिक संहिता से अनुसूचित क्षेत्र, अनुसूचित जनजाति विस्थापन, अनुसूचित जनजाति और प्रवासित आदिवासियों पर लागू ना करने हेतु ज्ञापन सौपा गया है।
समाज के अपने स्वयं के पारंपरिक नियम हैं-अनिल
नोट-अनिल उइके की फोटो साथ में प्रेषित है,लगा देवे।
म.प्र.आदिवासी विकास परिषद ब्लाक सचिव अनिल उइके ने बताया कि केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे उन जनजातियों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा जिनके पास अपने समाज पर शासन करने के लिए अपने स्वयं के पारंपरिक नियम हैं, क्योकि हम प्रकृति पूजक है। श्री उइके ने बताया कि आदिवासी समाज अपने जन्म, विवाह, तलाक, विभाजन, उत्तराधिकारी, विरासत और जमीन संपत्ति के मामलों में प्रथागत या रूढ़िविधि (कस्टमरी लॉ) से संचालित है और यही उसकी पहचान है जो उसे बाकी जाति, समुदाय और धर्म से अलग करती है। आदिवासियों के प्रथागत कानून को संविधान के अनुच्छेद 13(3)(क) के तहत कानून का बल प्राप्त है।
यह रहे शामिल-
ज्ञापन सौपते समय ददिया सपंच श्रीमती पूनम भलावी, नगपुरा पूर्व सरपंच नारायण आगरे, म.प्र.आदिवासी विकास परिषद ब्लाक अध्यक्ष ज्ञानसिंह गोड़गे, सचिव अनिल उइके, कार्यवाहक अध्यक्ष झनकारसिंह उइके, ग्रामीण अध्यक्ष धनसिंह वाड़िवा, गांेडवाना स्टूडेंट यूनियन जिला महामंत्री राकेश वाड़िवा, महेताबसिंह उइके, राजेन्द्र भलावी, राजेन्द्र उइके, देवेन्द्र उइके, तेजराम पन्द्रे, नीलकमल उइके, दिलीप उइके, रमेश भलावी, शिवलाल उइके, विनोद इड़पाचे, इंद्रसेन तेकाम, कार्तिक कोडापे, सुभाष मडावी, गायत्री पन्द्रे, कन्हैयालाल उइके, रामसिं कंगाली, शेखलाल उइके व शिवचरण उइके सहित अन्य शामिल रहे।