डबल मनी योजना में रुपया लगाने वालों में खुशी की लहर
डबल मनी योजना में रुपया लगाने वालों में खुशी की लहर
बालाघाट(पृथ्वीटाइम्स)
हाई कोर्ट जबलपुर के माननीय न्यायाधीश द्वारा डबल मनी लांड्रिंग केस में आरोपी सोमेंद्र कंकरायने , प्रदीप कंकरायने , तामेश मंसूरे , राकेश मंसूरे की ४३९ के तहत् जमानत याचिका की सुनवाई करते हुए पांच लाख की जमानत और इतनी ही साल्वेंसी के साथ मुचलका भरने का आदेश जारी कर जमानत अर्जी को स्वीकार कर लिया है । याचिका कर्ताओं की ओर से अधिवक्ता मनीष दत्त ने बताया कि जमाकर्ताओं के साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं की गई है और ना ही कोई नक्सली फंडिंग के प्रमाण पुलिस की ओर से प्रस्तुत किए जा सके हैं । ऐसी स्थिति में आरोपियों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है । माननीय विद्वान न्यायाधीश श्री संजय द्विवेदी ने प्रकरण का परीक्षण कर अधिवक्ता श्री दत्त की दलीलों से सहमत होकर चार्ज शीट में पुलिस की ओर से ऐसा कोई प्रमाण अथवा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाने के चलते जमानत अर्जी पर फैसला दिया है कि आरोपियों को जमानत दी जा सकती है ।
अभियोजन पक्ष इस बात को सिद्ध करने में असफल हुआ कि आरोपियों के खातों में किसी प्रकार का लेनदेन हुआ है या किसी व्यक्ति से साथ धोखाधड़ी हुई है । पुलिस की ओर से नक्सली फंडिंग से जुड़े होने के कोई प्रमाण प्रस्तुत किए जाने में सफलता नहीं मिली ।
एक दो दिन में आरोपी सक्षम जमानत प्रस्तुत कर जिला जेल बालाघाट से बाहर आ सकते हैं । पुलिस प्रशासन के लिए जरूरी हो गया है कि वो पूरी सतर्कता बरते ताकि भीड़ के उन्माद को रोका जा सके ।
*रोचक तथ्य*
पुलिस विभाग की ओर से उच्च न्यायालय में कहा गया कि छापे के दौरान के वीडियो १५ दिनों में डिलीट हो चुके हैं । जबकि सूत्रों के अनुसार जानकारी प्राप्त हुई है कि घटना से जुड़े सारे वीडियो मप्र सरकार के आला पदाधिकारियों को पुलिस प्रशासन के एक बड़े अधिकारी द्वारा भेजे गए हैं । तदाशय की जानकारी प्राप्त होते ही पुलिस के बड़े अधिकारी ने विवेचना में लगे अधिकारी को खिसका दिया है ।
पुलिस ने छापामारी कर दस करोड़ रूपए के साथ आरोपियों से और भी सामग्री जप्त करी थी लेकिन विवेचना करने में असफल रही । चालान पेश करने में हुई चूक का परिणाम और आरोपियों के अपराध को सिद्ध नहीं कर पाने के चलते आरोपियों की ओर से मानहानि जैसे प्रकरणों का सामना पुलिस प्रशासन को करना पड़ सकता है ।
वहीं दूसरी ओर आरोपियों के बरी होने का खामियाजा माननीय न्यायालय विवेचना अधिकारियों पर फोड़ सकता है ।